स्किनर का क्रिया प्रसूत सिद्धांत

इस सिद्धांत का प्रतिपादन अमेरिकी विचारक प्रोफेसर बी.एफ. स्किनर ने 1938 में किया स्किनर क्रिया प्रसूत अनुकूलन का आधार पुनर्बलन को मानते हैं इस सिद्धांत के मूल में थार्नडाइक द्वारा प्रतिपादित उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत है , जिसको स्किनर ने पुनर्बलन सिद्धांत में परिवर्तित कर दिया । इस सिद्धांत के अनुसार यदि किसी अनुक्रिया को करने से सकारात्मक एवं संतोषजनक परिणाम मिलते हैं तो प्राणी वह क्रिया बार-बार दोहराता है असफलता या नकारात्मक परिणाम मिलने पर प्राणी क्रिया को पुनः दोहराने से बचता है जिससे उद्दीपन अनुक्रिया का संबंध कमजोर हो जाता है ।

सिद्धांत के प्रमुख बिंदु

  • क्रिया पर प्रसूत का अर्थ होता है – काम करते समय जो सीखा जाता है ।
  • अधिगम किसी क्रिया को करते समय स्वत: ही प्राप्त हो जाता है ।
  • इन्होंने अपने सिद्धांत में पुनर्बलन को महत्वपूर्ण माना
  • पुनर्बलन के प्रकार – सकारात्मक पुनर्बलन –नकारात्मक पुनर्बलन
  • सकारात्मक पुनर्बलन मिलने पर कार्य को बार-बार किया जाता है जबकि नकारात्मक पुनर्बलन पर कार्य को दोहरा दोहराया नहीं जाता ।
  • सिद्धांत में उन्होंने स्किनर ने अभ्यास की उपयोगिता को समझाया ।
  • सिद्धांत में परिणाम को ही उद्देश्य माना गया है जिसके लिए अमुक कार्य किया जा रहा है ।
  • इन्होंने चूहा और कबूतर पर अपने प्रयोग को किया ।

चूहे पर किया गया प्रयोग

चूहे को एक पिंजरे में बंद कर दिया l उस पिंजरे में तीन बटने ब थी । एक बटन दबाने पर पानी आता , एक बटन दबाने पर खाना और एक बटन दबाने पर नीचे लगी बिजली की छड़ से चूहे को करंट लगता । जिस बटन से चूहे को पानी व खाना मिलता था वह अभ्यास कर उसे बार-बार दोहराता है जबकि जिस बटन से चूहे को करंट लगता है वह उसे बार बार नहीं दबाता है ।पानी और खाना चूहे के लिए सकारात्मक पुनर्बलन है जबकि बिजली की छड़ से लगने वाला करंट चूहे के लिए नकारात्मक पुनर्बलन है ।

स्किनर के क्रिया प्रसूत सिद्धांत को और अच्छे से समझने के लिए आप इस लिंक पर वीडियो देख सकते हैं ।

स्किनर के क्रिया प्रसूत सिद्धांत के शैक्षिक निहितार्थ

  • पाठ्यचर्या को छोटे-छोटे भागों में क्रमानुसार बनाना चाहिए।
  • शिक्षक को स्थिति अनुसार पुनर्बलन अवश्य देना चाहिए वह अच्छे कार्यों के लिए सकारात्मक पुनर्बलन तथा बच्चों के द्वारा किसी कार्य को रोकने के लिए नकारात्मक पुनर्बलन का उपयोग कर सकता है ।
  • शिक्षक को चाहिए कि वह बच्चों के लक्ष्य को स्पष्ट करें तथा उसका मार्ग निर्देशन करें ।
  • शिक्षक को बच्चों को यह बताना चाहिए कि उसके अभ्यास से प्राप्त होने वाला परिणाम उसके लिए सुखद है जिससे उसे उसे कार्य को या अधिगम को करने की अभिप्रेरणा मिलेगी ।
  • स्किनर का क्रिया प्रसूत सिद्धांत बार-बार अभ्यास को महत्व देता है जो मंदबुद्धि बालक के लिए अधिक उपयुक्त है ।
  • अभ्यास अधिगम को स्थाई बनता है ।
  • शिक्षक को व्यक्ति भिन्नता के आधार पर अनुभव बच्चों को अनुभव प्राप्त करने के अवसर अवश्य प्रदान करने चाहिए ।

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